Wednesday, May 24, 2023
Tuesday, March 28, 2023
Monday, March 13, 2023
Checkout this APP!
*ઓસ્કર એવોર્ડ સેરેમનીમાં ભારતના 3 નોમિનેશન:* ઓસ્કર નામ કેવી રીતે પડ્યું તે આજે પણ રહસ્ય છે, ટ્રોફી જીતવા છતાં પણ એક્ટરનો માલિકીનો હક નહીં
https://divya-b.in/BF1Sh4sl6xb
Checkout this APP!
*એજ્યુકેશન:* લોકનૃત્યમાં કલાનગરીએ રાજ્ય કક્ષાએ વગાડ્યો સફળતાનો ડંકો
https://divya-b.in/NWXHctrh4xb
Sunday, March 5, 2023
ઇમરણખાન
https://docs.google.com/document/u/0/d/1ZhbYaNkFDw2GyGoP4Imp4t1GKclFng0yguN_sFRtt1I/mobilebasic
Saturday, March 4, 2023
Friday, March 3, 2023
Tuesday, February 28, 2023
chaina
आर्कटिक महासागर पर चीनी निगाह
dw.com/hi/china-arctic-ambition/a-64811035
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Goldman
२४ फ़रवरी २०२३
अफ्रीका में चीन की बढ़ती ताकत के बाद क्या आर्कटिक पर भी चीनी दबदबा देखने को मिलेगा? ये सवाल उठ रहे हैं क्योंकि चीन भूराजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण आर्कटिक क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाने लगा है.
विज्ञापन
2013 में "योंग शेंग" ने इतिहास बनाया थाः आर्कटिक से होते हुए यूरोप पहुंचने वाला, वो पहला मालवाहक चीनी जहाज था. इस रास्ते को चीन ने "पोलर सिल्क रोड" यानी "ध्रुवीय सिल्क मार्ग" का नाम दिया और योंग शेंग जहाज, सुदूर उत्तर में चीनी महत्वाकांक्षा का प्रतीक बन गया.
आत्मविश्वास से लबरेज चीन अब थोड़ा थोड़ा करते आर्कटिक में अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने लगा है. आर्कटिक का भूराजनीतिक महत्व स्पष्ट है. यमाल प्रायद्वीप पर रूसी आर्कटिक क्षेत्र में गैस संसाधनों में निवेश जैसी परियोजनाओं के साथ चीन अपना प्रभाव फैला रहा है. जनवरी 2018 में, चीन ने पोलर सिल्क रोड प्रोजेक्ट शुरू किया था. अब वो कारोबारियों के जरिए आइसलैंड और नॉर्वे से घनिष्ठता बढ़ाने लगा है. स्पिट्सबर्गन में चीन का एक रिसर्च स्टेशन चलता है और उसने खुद को "आर्कटिक के करीबी देश" के तौर पर सार्वजनिक रूप से परिभाषित करना भी शुरू कर दिया है. इस दर्जे की मदद से चीन को नये अधिकार हासिल होने की उम्मीद है.
अफ्रीका को "कर्ज में फंसाने" के आरोपों के बीच चीन-अमेरिका में वर्चस्व की होड़
चीन का आइसब्रेकर शिप योंग शेंगचीन का आइसब्रेकर शिप योंग शेंग
चीन का आइसब्रेकर शिप योंग शेंगतस्वीर: picture-alliance/dpa/Qnb/Imaginechina
चीन के लिए आर्कटिक क्षेत्र बहुत दूर रहा है. लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समझ गए हैं कि ये इलाका कितना अहम है. देश की संसाधनों की जरूरत ने शी जिनपिंग को प्रमुख आर्कटिक शक्तियों के साथ बातचीत को बाध्य किया है, जबकि ये देश उन्हें शक की निगाह से देखते आए हैं. आर्कटिक की नयी भूराजनीति न सिर्फ विश्व राजधानियों और मीडिया में सक्रिय है बल्कि जमीन पर भी वो हरकत में हैं- दूतों-प्रतिनिधियों, उद्यमियों और मध्यस्थों के दौरे उस सामरिक क्षेत्र में बढ़ गए हैं. इस समूह में चीनियों के अलावा नॉर्वे, आइसलैंड, स्वीडन और अमेरिका के लोग भी शामिल हैं.
अफ्रीका को चीन और पश्चिमी देशों के हाथ में नहीं छोड़ेगा रूस
चीन विस्तार कर रहा है. "चीनाफ्रीका" के बाद क्या अब "चीनार्टिक" की बात भी हम लोग करने लगेंगे? कहा जाता है, ये वक्त चीन का है. महाशक्ति का दर्जा हासिल करने की अपनी चाहत का इजहार भी वो खुलकर करने लगा है. अमेरिका चिंतित है, यूरोप हिचकता है और रूस निवेश के लिए बेताब है. लेकिन चीन के असल इरादे क्या हैं?
क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP
चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
तस्वीर: Reuters/D. Sagoli
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Reynolds
अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
india sbmrin
https://docs.google.com/document/d/1F7pmbKQXRr2soHJwFrMAR3CfPYJphjyrVegJOzoehuc/edit?usp=sharing
Subscribe to:
Posts (Atom)